लेखनी कहानी 4-may-2022 बुढ़ापे का सहारा
रचयिता-प्रियंका भूतड़ा
कहानी शीर्षक-बुढ़ापे का सहारा
एक परिवार था। परिवार में माता पिता और उनका बेटा विवेक रहता था। विवेक के पिता आर्मी में सैनिक थे। एक दिन अचानक विवेक के पिता को एक पत्र आया। पत्र में लिखा था अचानक बॉर्डर पर लड़ाई छिड़ गई है इसलिए आपको तुरंत बुलाया जाता है।
विवेक के पिता पत्र पढ़ने के बाद तुरंत चले जाते हैं। लेकिन विवेक के पिता लड़ाई में शहीद हो जाते हैं।
"मानो हंसते हुए परिवार पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो।"विवेक की मां का रो- रो कर बुरा हाल हो जाता है। जैसे उसकी दुनिया में अब कुछ नहीं रहा हो।
लेकिन विवेक अपनी मां को सहानुभूति देता है और समझाता है कि मां" पापा देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए हैं।" हमें पापा पर गर्व होना चाहिए।
"इस तरह विवेक ही मां का बुढापे का सहारा बना।"
(कुछ दिनों के बाद)
आर्मी पोस्ट से एक पत्र आता है जिसमें लिखा होता है कि विवेक को अपने पिता की पोस्ट दी जाती है।
मां यह सुनकर कहती है कि तेरे पापा अब नहीं रहे और अब तू भी चला जाएगा। तो मेरा ख्याल कौन रखेगा?
विवेक ने कहा- मां तुझे तो गर्व होना चाहिए कि मैं भी पापा जैसा बनु और देश की रक्षा करूं।
इतना कहकर विवेक चला जाता है। वहां पर जाने के बाद विवेक को कुछ दिनों के बाद एक आर्मी लड़की से प्यार हो जाता है।
(कुछ दिनों के बाद)
वह अपनी मां को बताता है कि मां मैंने एक लड़की पसंद कर ली है। मैं तुझे उसकी फोटो भेज रहा हूं कैसी लगे बताना।
(मां गुस्से में)
मां उसे कहती है कि मैंने सोचा था कि तू चला गया तो कोई बात नहीं पर जो बहू आएगी वो मेरा बुढ़ापे का सहारा बनेगी। लेकिन वह भी तू आर्मी वाली पसंद कर लाया।
इतना कहकर मां रोने लगती है और फोन रख देती है।
विवेक की सपना से शादी हो जाती है। 1 महीने तक विवेक और सपना मां के साथ रहते हैं। फिर एक पत्र आता है कि बॉर्डर पर लड़ाई शुरू हो गई है पोस्ट तुरंत जॉइन करें।
विवेक कहता है मां मुझे और सपना को बॉर्डर पर जाना होगा क्योंकि वहां अचानक लड़ाई शुरू हो गई है।
मां नाराज होते कहती है इसलिए बोला था मुझे आर्मी वाली नहीं चाहिए। मुझे ऐसी चाहिए थी जो मेरी सेवा कर सके पर वह भी तूआर्मी वाली ले आया।
चलो ठीक है कोई बात नहीं अब तुम दोनों खुशी-खुशी जाओ और वापस लौटना।
विवेक और सपना चले जाते हैं। विवेक और सपना एक साथ ही लड़ाई लड़ रहे थे। दोनों दुश्मनों से लड़ रहे थे अचानक विवेक को गोली लग जाती है ,लेकिन सपना देख लेती है। सपना बहादुरी से पूरी लड़ाई लड़ती है और विवेक को हॉस्पिटल ले जाती है वहां पर उसका इलाज कराती है।
(कुछ दिनों के बाद)
विवेक ठीक होने के बाद घर वापस जाता है। मां अपने बेटे को देखकर उसका माथा चूमने लगती है और कहती है मेरा बेटा और बहू वापस आ गए हैं।
विवेक अपनी मां से कहता है मां अगर आज सपना नहीं होती तो तेरे बुढ़ापे का सहारा शहीद हो जाता। आज मैं जिंदा हूं तो सपना की वजह से।
सपना की बहादुरी की वजह से मैं घर लौट आया हूं।
मां ने कहा सही कहा बेटा तुमने आज मेरी आंखों का तारा सपना की वजह से ही है।" मैं गलत थी'असली में तो मेरे दोनों ही बुढ़ापे का सहारा है। "एक मेरी आंखें हैं और दूसरा मेरी लाठी।"
मां की आंखें नम हो जाती है दोनों को गले लगा लेती है।
आज की प्रतियोगिता की कहानी -बुढ़ापे का सहारा
Vijay Pandey
06-May-2022 11:30 PM
Badiya
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Neha syed
05-May-2022 02:29 PM
Nice
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Fareha Sameen
05-May-2022 01:42 PM
बहुत अच्छा लिखा है
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